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बुजुर्ग महिला को आखिरकार मिला अपना घर,चालीस वर्ष से मुस्लिम परिवार कर रहा था सेवा

बुंदेलखंड के दमोह जिले में रहने वाले मुस्लिम परिवार ने भारत की गंगा जमुना तेहज़ीब को उस वक़्त मजबूती दी जब पुरे देश में एक अलग ही धार्मिक लहर देखने को मिल रही है. दमोह के   मरहूम नूर खान के घर पर अचानक मेला उमड़ पड़ा जब आस पास के गांव में यह खबर फेल गयी थी की नूर खान के घर में जो महिला पिछले 40 वर्षो से रह रही थी वह एक हिन्दू परिवार से है व उनको लेने उनके घर वाले आने वाले है.

मरहूम नूर खान के बेटे ने बताया की उनके पिता पहले पत्थर लादने की ट्रक चलाया करते थे तब किसी अनजान शहर में एक बुजुर्ग औरत बेसुध पड़ी हुई थी जिनकी मानसिक हालत ठीक नहीं थी जिनको देखकर उनके पिताजी उस बुजुर्ग महिला को अपने घर ले आए थे व अपनी माँ के सामान उनकी सेवा की इस बिच कई बार अच्छन मौसी के घर वालो को ढूंढने की कोशिश की गई पर वे असफल रहे परन्तु रमजान  महीने में जब इफ्तार के बाद  इसरार अपनी माँ व अच्छन मौसी के पास बैठे थे तभी अच्छन मौसी के मुँह से परसापुर निकला जिसके बाद असरार ने गूगल पर यह शब्द ढूंढा तो उन्हें पता चला के यह अमरावती के पास एक गांव है फिर असरार ने एक एनजीओ की मदद से अच्छन मौसी के परिजनों का पता लगाने की कोशिश की इसमें वह सफल रहे.            

करीब चार दशक बाद पता चला की अच्छन मौसी का असली नाम  पंचुबाई है  जिनके पोते पृथ्वी भैया लाल शिंगने उनको पुरे धूम धाम से लेने इसरार के घर पहुंचे व बताया की उनको उनकी माँ ने बताया था की मेरी दादी इलाज के दौरान हॉस्पिटल से गुम हो गयी थी जिसकी रिपोर्ट उनके पिताजी ने 1979 में लकड़गंज पुलिस चौकी में लिखवाई थी. इसरार का कहना है की उनको ख़ुशी है की उनकी अछन मौसी को उनका खोया परिवार मिल गया परन्तु अब उनके घर वालो को मौसी की याद सता रही है.    

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