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जानिये hagia sophia म्यूजियम का पूरा इतिहास, क्या ईसाई ख़त्म कर देंगे मुस्लिमो का नामो निशान

hagia sophia म्यूजियम को मस्जिद में तब्दील करने के फैसले के बाद से पूरी दुनिया में ईसाई भड़क उठे है व तुर्की के इस कदम को ईसाई व मुस्लिमो के बिच खाई बनाने का फैसला बता रहे है परन्तु कई लोग चिंतित है की आखिर एक इमारत को म्यूजियम से मस्जिद बनाने पर आखिर इतना बवाल क्यों मचा हुआ है. वही कई लोग इस घटना को ईसाई धर्म की मशहूर भविष्यवाणी से जोड़ कर देख रहे है जिसमे ईसाई धर्म के एक राजा की वापसी के साथ इस्लाम धर्म पर कब्जा करने की धारणा जुडी हुई है.    


यह है HAGIA SOPHIA का इतिहास 

वैसे तो रोमन साम्राज्य में कई देवताओ की पूजा की जाती थी परन्तु रोमन राजा कोंस्टनटिन प्रथम ने ईसाई धर्म को अपना लिया था जिसके बाद ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का आधिकारिक धर्म माना जाने लगा था. रोमन राजा ने अपने नए राज्य की राजधानी एक पुराने शहर का नाम बदल कर बनाई थी जिसका नाम रखा गया था  "कोंस्टनटिनो पोल" जिसकी ख़ुशी में राजा  कोंस्टनटिन ने अपनी राजधानी में एक लकड़ी का चर्च बनवाया था जिसके बाद सन 404 ईस्वी में हुई एक जंग में इस चर्च को जला दिया गया था जिसके बाद तत्कालीन राजा थियो डोसियस ने फिर से इस चर्च का निर्माण करवाया था जिसको भी 504 ईस्वी में हुई एक जंग में जला दिया गया था. 

जिसके बाद शुरू हुआ नए राजा जस्टिनियन का राज जहा उन्होंने उस वक़्त के सबसे मशहूर वास्तुकार को एक ऐसा चर्च बनाने का जिम्मा दिया गया था जो न तो पहले कभी बना हो न ही कभी कोई बना पाए जिसके बाद करीब दस हजार से ज्यादा मजदूरों की पांच वर्ष की  मेहनत के बाद वर्ष 537 ईस्वी में एक विशाल ईमारत को तैयार किया गया जिसका नाम रखा गया था hagia sophia यह चर्च इतना विशाल था की राजा जस्टिनियन ने जब इसमें कदम रखा तो येरुसलम का निर्माण करने वाले सोलेमन को याद करते हुए कहा था की मेने तुम्हे भी पीछे छोड़ दिया.

जिसके बाद करीब 52 दिनों की घेराबंदी के बाद 29 मई 1453 दुनिया भर में अभेद कहे जाने वाले किले को उस्मानिया संतलत के एक वारिस जिनकी उम्र महज 21 वर्ष थी परन्तु अपने होसलो के बुते उन्होने रोमन साम्राज्य को खत्म कर दिया था जिनका नाम था सुलतान मेहमेद. सुलतान ने जित के बाद शहर का नाम बदल कर इंस्तांबुल रखा और hagia sophia चर्च को बदलकर एक मस्जिद में तब्दील कर दिया गया और मस्जिद का नाम रखा गया "हयात सोफ़िया"  व पूरी इमारत को मुस्लिम कलाकृतियों के साथ नए निर्माण में तब्दील किया गया.       
प्रथम विश्व युद्ध के बाद उस्मानिया संतलत के आखरी वारिस को गद्दी से नाकाबिल बता कर हटा दिया गया व तुर्की को मुस्तफा कमाल पाशा की निगरानी में एक सेक्युलर राष्ट्र घोषित कर दिया गया.  राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल ने अपने कार्यकाल में हयात सोफिया मस्जिद को एक म्यूजियम में बदल दिया जिसका कई इस्लामिक राष्ट्रों ने विरोध किया तो ईसाई राष्ट्रों में इसे म्यूजियम बनाने के फैसले को जश्न मनाते हुए स्वागत किया गया. हालाँकि 2020 में कटटरवादी मुस्लिम सरकार होने की वजह से इसे फिर से मस्जिद में तब्दील करने का फैसला राष्ट्रपती इर्दगोन के द्वारा लिया गया जिसके खिलाफ तुर्की की कोर्ट में याचिका दायर की गई है अब 2 सप्ताह के भीतर कोर्ट को फैसला सुनना है जिसके बाद यह साफ़ हो जाएगा की यह मस्जिद बनेंगी या म्यूजियम.

क्या ईसाई कर देंगे मुस्लिम धर्म को ख़त्म 

ईसाई धर्म में एक भविष्यवाणी मशहूर है जिसमे यह कहा जाता है की एक ईसाई राजा फिर से जन्म लेगा और तुर्की को दुनिया के नक़्शे से हमेशा के लिए गायब कर देगा और पूरी दुनिया में केवल ईसाई धर्म का राज होगा व दुनिया की सबसे बड़ी जंग के बाद एक बार फिर hagia sophia पर ईसाई धर्म का कब्जा होगा जो उनकी सबसे बड़ी जित होगी. अब दुनिया भर के ईसाई इस भविष्यवाणी का हवाला देते हुए इस फैसले को ईसाई व मुस्लिम में खाई बनाने वाला बता रहे है.        

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