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जानिए आखिर क्यों भगत सिंह व उनके साथियो के शव को दो बार जलाया गया था

जयपुर, आज भारत के स्वतन्त्रता दिवस के मोके पर बात करेंगे शहीदे आज़म भगत सिंह व उनके आज़ादी के दीवाने साथी राजगुरु व सुखदेव की  वैसे तो सभी को पता हे की देश की आज़ादी को अपनी दुल्हन मानने वाले इन वीरो को अंग्रेजो के द्वारा 23 मार्च 1931 को तय फांसी की सजा के एक दिन पहले ही  फांसी दि गई थी, अंग्रेजो को डर था की देश के युवा क्रांतिकारी को फांसी देने की वजह से कही गुलाम भारत की जनता आक्रोशित होकर इनकी फांसी न रुकवा दे जिससे अंग्रेजी हुकूमत की नीव कमजोर होने का खतरा था.

इसीलिए अंग्रेजो ने एक दिन पहले ही मध्यरात्रि को इन क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर लटका दिया था व आदेश दिया था की इनके शव के टुकड़े कर सतलज नदी के किनारे जला दिया जाए, जब अंग्रेज पुलिस कर्मी भगत सिंह,  राजगुरु व सुखदेव के शव को जला रहे थे तब लोगो की इसकी जानकारी जेल के ही एक कर्मचारी ने दे दि थी जिससे हजारो  की संख्या में गुसाई लोग सतलज नदी पर पहुँच गए भीड़ को आता देख अंग्रेज वंहा से भाग निकले थे.    

वन्दे मातरम व इंकलाब जिन्दा बाद के नारे लगते हुए जब भीड़ ने क्रांतिकारियों की चिता देखि तो तुरंत उन्होंने चिता को बूजाकर वीर शहीदों के शव को निकाल कर लाहौर लेकर गए जहा सम्मान के साथ उनकी चिता को आग दि गई व हमेशा हमेशा के लिए पुरे भारत व दुनिया भर के युवाओ के लिए आदर्श बन गए.

सबसे पहले सुखदेव को दि गई थी फांसी 

बहुत कम लोग जानते हे की जब अंग्रेज भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी के तख्ते  पर ले गए तो जल्लाद के द्वारा पूछा गया की सबसे पहले किसको फांसी दि जाए  तब सुखदेव ने सबसे पहले फांसी के फंदे को बिना चेहरा ढके दि जाने के लिए कहा और ऐसा ही किया गया इस तरह से भारत के तीन वीर सपूतो ने मातृभूमि की खातिर अपने आप को कुर्बान कर दिया व वीर गति प्राप्त की.    

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