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भगत सिंह को फांसी देने के बजाय अंग्रेजो को अपना इस्तीफा दे दिया था, जानिये मुस्लिम जज के बारे में

वैसे तो आज़ादी से पहले देश में कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी पैदा हुए जिनके किस्से सुनकर हर किसी के दिल में देश प्रेम की भावना जाग जाती है परन्तु कुछ ऐसे भी निडर और स्वाभिमानी स्वतंत्रता सेनानी भी इस देश में थे जो आज भी कई सरकार बदल जाने के बाद गुमनामी के अन्धकार में खोए हुए ऐसे ही एक भारतीय वीर की कहानी हम आज आपको बताने वाले है जिनको जो दर्जा मिलना चाहिए था वो नहीं मिल पाया व उनका नाम भारतीय इतिहास में कही धूमिल हो गया है.


हम बात कर रहे है सैयद आगा हैदर की जो की आजादी से पहले अंग्रेजी हुकूमत में बतौर जज की भूमिका निभाया करते थे. सैयद आगा हैदर का जन्म  1876 में सहारनपुर जो की उनका पुश्तैनी गांव था उसमे एक सम्पन्न मुस्लिम परिवार में हुआ था जिसके बाद वर्ष 1925 में उन्हें लाहौर हाई कोर्ट में जस्टिस के रूप में नियुक्त किया गया वैसे तो सर आगा हैदर जैसे वीर पर अंग्रेजो के लिए काम करते हुए भारतीय अपराधियों ( क्रांतिकारी ) की मदद करने के कई आरोप लगे परन्तु उन्हें मुख्यधारा में पहचान तब मिली जब शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को असेंबली पर बेम फेकने व अंग्रेज अधिकारी की गोली मारकर हत्या करने के आरोप में फांसी देने के लिए सर सैयद आगा हैदर साहब पर दबाव बनाया गया परन्तु सर सैयद आगा हैदर ने तीनो क्रांतिकारी को मोत की सजा सुनाने के बजाय अंग्रेजी हुकूमत को अपना इस्तीफा सौंप दिया था जिसके बाद उन पर क्रांतिकारियों पर हमदर्दी बरतने के साथ अंग्रेजी हुकूमत के साथ गद्दारी करने के जैसे गंभीर आरोप लगे.

सर सैयद आगा हैदर साहब के इस्तीफा देने के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उनके साथ कई अमानवीय व्यवहार किये यहाँ तक की उन्हें जेल में भी डाला गया परन्तु तत्कालीन कांग्रेस के दबाव के चलते उन्हें उनके पुश्तैनी गाँव  सहारन पुर भेज दिया गया जहा उन्हें पूरी उम्र निगरानी में रखा गया था व 5 फरवरी 1947 को उनकी मृत्यु हो गई. 

ऐसे वीर सपूत जो की आज भी गुमनामी की जिंदगी जी रहे है आइये आप और हम मिलकर ऐसे वीर सपूतो को धूमिल हो चुके इतिहास में सम्मानजनक स्थान दिलाए. आपको अगर हमारी पोस्ट पसंद आई हो तो आप हमे कमेंट करके बता सकते है.              

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